महात्मा गाँधी एवं कस्तूरबा |
"स्वराज की मेरी अवधारणा के बारे (समझने) में ग़लती न हो | यह परायों (अँग्रेज़ों) के नियन्त्रण से पूरी तरह से आर्थिक आज़ादी है अर्थात पूर्ण आर्थिक स्वतंत्रता, इसके एक किनारे पर राजनैतिक आज़ादी है तो दूसरे पर आर्थिक | इसके दो और किनारे है जिनमें से एक सामाजिक तथा नैतिक है, इसके अनुकूल दूसरा धर्म है, धर्म से अभिप्राय यहाँ शब्द के उच्चतम अर्थ से है | इसमें हिन्दूत्व, इस्लाम, ईसाईयत आदि शामिल है परंतु इन सब से ऊपर हम इसे स्वराज का वर्ग (Square) कह सकते हैं | इसका यदि एक भी कोण असत्य हो जाता है तो यह अपना आकार खो देगा |" - हरिजन, 2-1-‘
(The original text is in English here it is translated by Priyadarshan Shastri)
(The original text is in English here it is translated by Priyadarshan Shastri)
महात्मा गाँधी ने स्वराज की बहुत सटीक तुलना एक वर्गाकार से की है जिसके एक कोण पर आर्थिक स्वतंत्रता है, दूसरे कोण पर राजनैतिक स्वतंत्रता है, तीसरे पर सामाजिक एवं नैतिकता तथा चौथे पर धर्म है। गाँधी जी के अनुसार सबसे ऊपर आर्थिक आजादी है परन्तु आज हमारा देश वैश्वीकरण के नाम पर बड़े बड़े कोरपोरेट घरानों के हाथों परतंत्र हो चुका है। इसीने राजनैतिक दृष्टि से भी हमें परतंत्र बना दिया है। आज हर बड़ा कारपोरेट घराना अपनी मन मर्जी से देश की रीतिनीति एवं दिशा तय करवा लेता है। सामाजिक एवं नैतिकता की हमारी हालत जग जाहिर है रहा सवाल धर्म का तो उसके नाम पर देश को आए दिन जाति, सम्प्रदाय के नाम पर बाँटा जा रहा है। धर्म का उपयोग केवल वोट बैंक के लिए ही रह गया है। धन्यवाद।
No comments:
Post a Comment