पश्चिम का समाजवाद एवम् साम्यवाद कुछ निश्चित परिकल्पनाओं पर आधारित हैं जो मूलभूतरूप में हमारे से अलग हैं | मनुष्य स्वभाव के स्वार्थीपन के आवश्यकरूप से होंने की अवधारणा में उनका विश्वास होना, उन्हीं में से एक है | मैं इस बात का अनुमोदन नहीं करूँगा क्योंकि मैं जनता हूँ मनुष्य एवम् पशुओं के बीच के मुख्य अंतर को, पहले वाला, (मनुष्य) अपने अंदर की आत्मा की आवाज़ पर प्रतिक्रिया कर सकता है, अपने मानोभावों को ऊपर उठा सकता है, जो पशुओं के साथ साथ उसमें भी हैं। इसलिए स्वार्थीपन एवम् हिंसा, जो पशुओं के स्वभाव में है, न कि मानव की अजर-अमर आत्मा में, में वह श्रेष्ठ है |
हिन्दुत्व की मूलभूत अवधारणा में सत्य को ढूंढ़ने के पीछे बरसों की तपस्या एवम् आत्मसंयम है | इसीलिए हमारे यहाँ ऐसे संत हुए हैं जिन्होंने धरती के उच्चतम एवम् दूरस्थ स्थानों को खोजने में अपने शरीरों को थका डाला एवम् ज़िंदगियों को न्यौछावर कर दिया अतः हमारा समाजवाद एवम् साम्यवाद अहिंसा पर आधारित होना चाहिए, श्रमिक तथा पूंजीपति एवम् भूमिधारी और किरायेदार के मध्य शांतिमय सहयोग पर आधारित होना चाहिए | -अमृता बाज़ार पत्रिका, 2-8-‘34
(The original text is in English here it is translated by Priyadarshan Shastri)
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