Friday, September 14, 2012

"अंग्रेजी के प्रति सम्मोहन से पिंड छुड़ाना स्वराज का एक मुख्य उद्देश्य है।"

हिंदी दिवस
हिंदी दिवस
  "अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की भाषा है, यह डिप्लोमेसी की भाषा है, इसमें ढेरों साहित्य के समृद्ध खजाने समाहित हैं। यह पश्चिमी विचार एवं संस्कृति का परिचय हम से कराती है। इसलिए हम में से कुछ के लिए अंग्रेजी का ज्ञान होना आवश्यक है ताकि वे राष्ट्रिय (व्यापार) के विभाग एवं अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति चालू रख सकें तथा राष्ट्र (भारत) को पश्चिम के विचार, साहित्य एवं विज्ञान दिये जा सकें। ये अंग्रेजी का एक विधिमान्य उपयोग होगा । आज  इस प्रकार अंग्रेजी ने हमारे हृदय के सबसे प्यारे स्थान को हड़प कर हमारी मातृभाषा को राजगद्दी से हटा दिया है। यह एक अस्वाभाविक स्थिति है जो अंग्रेजों से असमान (unequal) संबंधों के कारण है। भारतीय मस्तिष्क का उच्चतम विकास बिना अंग्रेजी के ज्ञान के संभव होना चाहिए। सर्वोत्तम समाज में अंग्रेजी के ज्ञान के बिना दाखिला संभव नहीं होगा, ऐसे (सोच) के लिए हमारे लड़कों एवं लड़कियों को प्रेरित करना भारत के (पुरुषों के) पुरुषत्व का, खासकर (महिलाओं के)  नारीत्व के प्रति हिंसा करने जैसा है। ऐसा विचार अत्यंत ही अपमानजनक है, सहन नहीं किया जा सकता। अंग्रेजी के प्रति सम्मोहन से पिंड छुड़ाना स्वराज का एक मुख्य उद्देश्य है।" 
- Mahatma Gandhi -Young India, 2-2-‘21

(Original text is in English it has been translated by Priyadarshan Shastri)

Wednesday, September 12, 2012

"स्वराज" एक चतुष्कोण

महात्मा गाँधी एवं कस्तूरबा
         "स्वराज की मेरी अवधारणा के बारे (समझने) में ग़लती न हो | यह परायों (अँग्रेज़ों) के नियन्त्रण से पूरी तरह से आर्थिक आज़ादी है अर्थात पूर्ण आर्थिक स्वतंत्रता, इसके एक किनारे पर राजनैतिक आज़ादी है तो दूसरे पर आर्थिक | इसके दो और किनारे है जिनमें से एक सामाजिक तथा नैतिक है, इसके अनुकूल दूसरा धर्म है, धर्म से अभिप्राय यहाँ शब्द के उच्चतम अर्थ से है | इसमें हिन्दूत्व, इस्लाम, ईसाईयत आदि शामिल है परंतु इन सब से ऊपर हम इसे स्वराज का वर्ग (Square) कह सकते हैं | इसका यदि एक भी कोण असत्य हो जाता है तो यह अपना आकार खो देगा |" - हरिजन, 2-1-‘
(The original text is in English here it is translated by Priyadarshan Shastri) 
       महात्मा गाँधी ने स्वराज की बहुत सटीक तुलना एक वर्गाकार से की है जिसके एक कोण पर आर्थिक स्वतंत्रता है, दूसरे कोण पर राजनैतिक स्वतंत्रता है, तीसरे पर सामाजिक एवं नैतिकता तथा चौथे पर धर्म है। गाँधी जी के अनुसार सबसे ऊपर आर्थिक आजादी है परन्तु आज हमारा देश वैश्वीकरण के नाम पर बड़े बड़े  कोरपोरेट घरानों के हाथों परतंत्र हो चुका है। इसीने राजनैतिक दृष्टि से भी हमें परतंत्र बना दिया है। आज हर बड़ा कारपोरेट घराना अपनी मन मर्जी से देश की रीतिनीति एवं दिशा तय करवा लेता है। सामाजिक एवं नैतिकता की  हमारी हालत जग जाहिर है रहा सवाल धर्म का तो उसके नाम पर देश को आए दिन जाति, सम्प्रदाय के नाम पर बाँटा जा रहा है। धर्म का उपयोग केवल वोट बैंक के लिए ही रह गया है। धन्यवाद।

Monday, September 10, 2012

भारत और साम्यवाद

पश्चिम का समाजवाद एवम् साम्यवाद कुछ निश्चित परिकल्पनाओं पर आधारित हैं जो मूलभूतरूप में हमारे से अलग हैं | मनुष्य स्वभाव के स्वार्थीपन के आवश्यकरूप से होंने की अवधारणा में उनका विश्वास होना, उन्हीं में से एक है | मैं इस बात का अनुमोदन नहीं करूँगा क्योंकि मैं जनता हूँ मनुष्य एवम् पशुओं के बीच के मुख्य अंतर को, पहले वाला, (मनुष्य) अपने अंदर की आत्मा की आवाज़ पर प्रतिक्रिया कर सकता है, अपने मानोभावों को ऊपर उठा सकता है, जो पशुओं के साथ साथ उसमें भी हैं। इसलिए स्वार्थीपन एवम् हिंसा, जो पशुओं के स्वभाव में है, न कि मानव की अजर-अमर आत्मा में, में वह श्रेष्ठ है | 
         हिन्दुत्व की मूलभूत अवधारणा में सत्य को ढूंढ़ने के पीछे बरसों की तपस्या एवम् आत्मसंयम है | इसीलिए हमारे यहाँ ऐसे संत हुए हैं जिन्होंने धरती के उच्चतम एवम् दूरस्थ स्थानों को खोजने में अपने शरीरों को थका डाला एवम् ज़िंदगियों को न्यौछावर कर दिया अतः हमारा समाजवाद एवम् साम्यवाद अहिंसा पर आधारित होना चाहिए, श्रमिक तथा पूंजीपति एवम् भूमिधारी और किरायेदार के मध्य शांतिमय सहयोग पर आधारित होना चाहिए | -अमृता बाज़ार पत्रिका, 2-8-‘34
(The original text is in English here it is translated by Priyadarshan Shastri) 

Tuesday, September 4, 2012

"Education"

"दूसरे देशों की सत्यता कुछ भी हो, भारत जहाँ, किसी भी क़ीमत पर ८० प्रतिशत से भी अधिक जनता खेतिहर एवम् १० प्रतिशत औद्योगिक (श्रमिक) है में, शिक्षा को केवल अक्षरज्ञान बना देना एवम् लड़कों तथा लड़कियों को बाद के जीवन के लिए शारीरिक श्रम की दृष्टि से अनुपयुक्त (unfit) बना देना अपराध है | हालाँकि मैं मानता हूँ की हमारे समय का एक बड़ा हिस्सा रोटी कमाने के श्रम में लग जाता है फिर भी हमारे बच्चों को उनके बालपन से ही श्रम की गरिमा ( dignity)  समझानी चाहिए | उन्हें इस प्रकार नहीं पढ़ाया जाना चाहिए कि वे विद्यालय जाने में हतोत्साहित हों और उन्हें लगे कि उनका जाना व्यर्थ है, और उन्हें एक खेतीहर श्रमिक को लगता है वैसा लगने लगे |" -Young India, 1-9-‘21
 (The original text is in English it is translated in Hindi by Priyadarshan Shastri)

"अगर स्वराज का मक़सद हमें सभ्य बनाना नहीं है, हमारी सभ्यता को स्थिर एवम् शुद्ध करना नही है तो इसका (स्वराज) कोई मूल्य नहीं होगा | हमारी सभ्यता का मूल सार अपने सभी कार्यों, चाहे वे जनता के लिए हों या व्यक्तिगत, में नैतिकता को उच्च स्थान प्रदान करना है |" -यंग इंडिया, 23-1-‘30
"पूर्ण स्वराज....पूर्ण... कम्पलीट से है क्योंकि जैसा जितना ये (स्वराज) एक राजकुमार के लिए है उतना ही एक खेतिहर के लिए है, जैसा जितना ये एक अमीर ज़मींदार के लिए है उतना ही एक भूमिहीन किसान के लिए है, जैसा जितना ये हिंदुओं के लिए है उतना ही मुसलमानों केलिए है, ईसाईयों, पारसियों, जैनियों, सिक्खों एवम् यहूदियों के लिए है जाती या नस्ल या जीवन स्तर का विभेद विचारणीय नही है |" -यंग इंडिया, 5-3-‘31 
(The original text is in English, it is translated in Hindi by Priyadarshan Shastri)

Monday, September 3, 2012

"मेरे- या-- हमारे सपनों के स्वराज में किसी भी धार्मिक अथवा जातीय गंतव्य (मंजिल) की पहचान नहीं होगी न ही ऐसा होगा जिसमें पढ़े लिखे और अमीर आदमियों का ही एकाधिकार हो । स्वराज सबके लिए होगा जिसमें किसान होगे, इसके अलावा खासकर अपाहिज, अँधे एवं कठिन परिश्रम करने के बावजूद भुखमरी के शिकार लाखों लोग भी सम्मिलित होंगे ।": Young India, 26-3-‘31
"ये कहा जाता है कि इंडियन स्वराज में सबसे बड़े समुदाय का शासन होगा यानि हिन्दूओं का । इससे (ऐसा कहने की ) बड़ी भूल कोई नहीं हो सकती। अगर ऐसा सत्य होता तो मैं इसे स्वराज कहने से मना कर देता तथा अपने वश में की, पूरी ताकत से लड़ता । मेरे लिए हिंद स्वराज सब लोगों का शासन है, न्याय का शासन है ।" Young India, 16-4-‘31

Sunday, September 2, 2012


"स्वराज केवल वहाँ कायम रखा जा सकता है जहाँ निष्ठावान एवम् देशभक्त, जिनका देश के भले का लक्ष्य ही सर्वोपरि हो चाहे कोई भी बात हो जिसमें व्यक्तिगत लाभ ही क्यों ना शामिल हो | स्वराज से अभिप्राय अधिकतम (लोगों) के शासन से है | जहाँ अधिकतम ही अनैतिक एवम् स्वार्थी हो जाएँ वहाँ उनके शासन को 'अराजकता' के सिवा कुछ भी नहीं कहा जा सकता है |"- .Young India, 28-7-‘21

'स्वराज' एक पवित्र शब्द है, एक वैदिक शब्द है, जिसका अर्थ है- आत्मानुशासन तथा आत्मसंयम,  सभी प्रतिबंधनों से मुक्ति को अक्सर 'आज़ादी' समझा जाता है से नहीं है |' -महात्मा गाँधी 
महात्मा गाँधी ने १९२२ में माँग की थी - "स्वराज ब्रिटिश पार्लियामेंट की भिक्षा नहीं होगी, यह भारत की स्वयं की गई घोषणा होगी | यह सत्य है कि इसे पार्लियामेंट का एक्ट के अधीन अभिव्यक्त किया जाएगा किंतु यह भारत के लोगों की घोषणा का विनम्र अनुमोदन मात्र होगा जैसा कि दक्षिण अफ्रीका के संघ के मामले में किया गया था | "उक्त माँग महात्मा गाँधी ने भारत के संविधान की रचना भारत के लोगों के द्वारा स्वयं करने के संबंध में ब्रिटिश शासन से की थी |"
-प्रियदर्शन शास्त्री 

'पूर्ण स्वराज'

"महात्मा गाँधी हमारे राष्ट्रपिता हैं और हर पिता का एक सपना होता है अपने घर को लेकर के । गाँधी जी ने अपने घर- भारत की आजादी का सपना देखा था। अपने इसी सपने को उन्होंने  'स्वराज' नाम दिया था । गाँधी जी की दृष्टि में आजादी का मतलब भारत में ब्रिटिश शासन के अंत मात्र से नहीं था, उनकी निगाह में 'पूर्ण स्वराज' प्राप्त करना असल आजादी था । आज के सन्दर्भ में देश जिन आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक परिस्थितियों से गुजर रहा है उससे स्पष्ट प्रतीत होता है कि अभी हमारे देश से केवल ब्रिटिश शासन का अंत हुआ है । महात्मा गाँधी का 'स्वराज' अभी आना शेष है।"
- प्रियदर्शन शास्त्री